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आपराधिक कानून

चिकित्सा साक्ष्य के स्थान पर चश्मदीद के साक्ष्य को प्राथमिकता देना

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 21-Sep-2023

रमेशजी अमरसिंह ठाकुर बनाम गुजरात राज्य

कानूनी कार्यवाही में चश्मदीद के साक्ष्य बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं।

उच्चतम न्यायालय

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

रमेशजी अमरसिंह ठाकुर बनाम गुजरात राज्य के मामले में, उच्चतम न्यायालय (SC) द्वारा आपराधिक मामलों से संबंधित कानूनी कार्यवाही में प्रत्यक्षदर्शियों के साक्ष्य के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया है।

पृष्ठभूमि-

  • यह मामला इस तथ्य से सामने आया है कि मृतक की हत्या चाकुओं के वार कर की गयी है।
  • मृतक के भाई द्वारा एक प्रथम सूचना रिपोर्ट (F.I.R.) दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि अपराध अपीलकर्त्ता (अभियुक्त) और दो अन्य व्यक्तियों द्वारा किया गया था।
  • शव परीक्षण करने वाले सर्जन ने पाया कि मृत्यु सदमे और चाकू की चोट की वज़ह से रक्तस्राव के कारण हुई थी।
  • उन्होंने यह भी पहचाना कि मृतक के शरीर पर आठ चोटें आई थीं, जो उनकी राय में पोस्टमार्टम से पहले की थीं।
  • चिकित्सीय साक्ष्यों में यह भी कहा गया है कि बरामद किये गए चाकू से मौत नहीं हो सकती।
  • अभियोजन का मामला मुख्य रूप से मृतक के दूर के रिश्तेदार के साक्ष्य पर आधारित था, जिसे अभियोजन पक्ष ने प्रत्यक्ष प्रमाण/चश्मदीद के रूप में प्रस्तुत किया था।
  • जबकि अपीलकर्त्ता की ओर से तर्क दिया गया कि साक्ष्यों और स्वयं चश्मदीदों के बयानों में पर्याप्त विसंगतियाँ और विरोधाभास थे क्योंकि वह एक तटस्थ व्यक्ति नहीं थे।
  • ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया क्योंकि न्यायालय ने चाकू से वार करने के तरीके और हमले के हथियार की पहचान के संबंध में अभियोजन पक्ष की बात में विरोधाभास पाया।
  • इसके बाद, गुजरात उच्च न्यायालय (HC) में अपील करने पर, आरोपी को भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302 और 114 के तहत दोषी ठहराया गया।
  • इसलिये उच्चतम न्यायालय में एक आपराधिक अपील दायर की गई थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • उच्चतम न्यायालय ने दरबारा सिंह बनाम पंजाब राज्य (वर्ष 2012) और अनवरुद्दीन बनाम शकूर (वर्ष 1990) मामले में दिये गए अपने पहले के फैसलों पर भरोसा किया, जिसमें चिकित्सा विशेषज्ञों की राय पर चश्मदीद के साक्ष्य के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया था। इस फैसले ने इस बात पर प्रकाश डाला कि चश्मदीद गवाह का बयान, भले ही प्रत्येक विवरण में संपूर्ण न हो लेकिन घटनाओं के कालानुक्रमिक क्रम को स्थापित करने में अत्यधिक महत्त्व रखता है।
  • न्यायाधीश अनिरुद्ध बोस और न्यायाधीश बेला एम. त्रिवेदी ने गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध अपील पर सुनवाई करते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा बरी किये जाने के फैसले को पलट दिया।
    • खंडपीठ ने कहा “सिर्फ इसलिये कि प्रत्यक्षदर्शी/चश्मदीद द्वारा बताई गई चोटों से अधिक चोटें थीं, अभियोजन पक्ष के बयान को नकारा नहीं जा सकता। हमारी राय में अपीलकर्त्ता द्वारा बताई गई विसंगतियाँ मामूली हैं। मैं एक भीषण हत्या का एक चश्मदीद साक्ष्य के दौरान मृतक पर किये गए चाकू के वार का एक-एक करके वर्णन नहीं कर सकता जैसा कि पटकथा में होता है।''
  • उच्चतम न्यायालय ने यह भी बताया कि ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के गवाहों की समग्र गवाही को नज़रअंदाज करते हुए गवाहों के बयानों में अपेक्षाकृत कम विरोधाभासों पर अनुचित ज़ोर दिया था।

चश्मदीद के साक्ष्य बनाम विशेषज्ञ की राय

  • चश्मदीद साक्ष्य: इसका अर्थ है किसी प्रत्यक्ष प्रमाण का साक्ष्य।
  • विशेषज्ञ : ऐसा व्यक्ति जिसने आवश्यक क्षेत्र में विशेष ज्ञान, कौशल या अनुभव प्राप्त कर लिया हो।

चिकित्सा विशेषज्ञ की राय

  • चिकित्सा विशेषज्ञ: चिकित्सा विशेषज्ञ का अर्थ है एक चिकित्सक, सर्जन, नर्स, बाल रोग विशेषज्ञ, सूक्ष्म जीवविज्ञानी या कोई अन्य कुशल व्यक्ति जिसे अपनी विशेषज्ञता का अपेक्षित ज्ञान हो।
  • ऐसे आपराधिक मामलों में जहाँ आरोपी और पीड़ित की चिकित्सा जाँच आवश्यक होती है, वहाँ चिकित्सकों की राय लेने की आवश्यकता होती है और यह महत्त्वपूर्ण है।
  • निम्नलिखित साबित करने के लिये ऐसी राय की आवश्यकता हो सकती है :
    • किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण।
    • रोग या चोट का स्वभाव और शरीर या मन पर प्रभाव।
    • वह तरीका या उपकरण जिसके द्वारा ऐसी चोटें पहुँचाई गईं।
    • किसी व्यक्ति की आयु।
    • व्यक्ति की शारीरिक स्थिति।

कानूनी प्रावधान

भारतीय दंड संहिता, 1860

उपरोक्त मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट (F.I.R.) भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 और 114 से संबंधित है जिसका विवरण नीचे दिया गया है:

धारा 114 - अपराध किये जाते समय दुष्प्रेरक की उपस्थिति- भारतीय दंड संहिता की धारा 114 के अनुसार, जब कभी कोई व्यक्ति अनुपस्थित होने पर दुष्प्रेरक के नाते दंडनीय हो और वह दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किये गये अपराध / कार्य के समय उपस्थित होने के लिये दंडनीय होता है, तो यह समझा जायेगा कि उसने ऐसा कार्य या अपराध किया है।

धारा 302 - हत्या के लिये दंड - जब भी कोई किसी व्यक्ति की हत्या करता है, तो उसे मृत्यु दंड या आजीवन कारावास और साथ ही आर्थिक दंड से दंडित किया जायेगा।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872

भारतीय साक्ष्य अधिनियम में धारा 45 के अंतर्गत विशेषज्ञ के साक्ष्य का उल्लेख है।

धारा 45 - विशेषज्ञों की राय - जब न्यायालय को विदेशी विधि या विज्ञान या कला की किसी बात पर या हस्तलेख या अंगुली-चिह्नों की अनन्यता के बारे में राय बनानी हो तब उस बात पर ऐसी विदेशी विधि, विज्ञान या कला में या हस्तलेख या अंगुली-चिन्हों की अनन्यता विषयक प्रश्नों में, विशेष कुशल व्यक्तियों की रायें सुसंगत तथ्य है।

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम किसी विशेषज्ञ की राय को उचित महत्त्व देता है, हालाँकि एक सामान्य व्यक्ति की राय का कोई महत्त्व नहीं है।
  • विशेषज्ञ का साक्ष्य निर्णायक नहीं है और ऐसे साक्ष्य पर कितना भरोसा किया जाना चाहिये या इसे कितना महत्त्व दिया जाना चाहिये यह संबंधित न्यायालय का अधिकार क्षेत्र है।

निर्णयज विधि

  • दयाल सिंह बनाम उत्तरांचल राज्य (वर्ष 2012): उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विशेषज्ञ की राय का प्राथमिक उद्देश्य न्यायालय को अंतिम फैसले तक पहुँचने में सहायता करना है, हालाँकि ऐसी राय न्यायालय के लिये बाध्यकारी नहीं है।
  • पृथ्वीराज जयंतीभाई वनोल बनाम दिनेश दयाभाई वाला (वर्ष 2014) मामले में न्यायामूर्ति नवीन सिन्हा और आर. सुभाष रेड्डी की उच्च न्यायालय की पीठ ने माना, कि चश्मदीद के साक्ष्य को सबसे उचित साक्ष्य माना जाता है जब तक कि इस पर संदेह करने के कोई कारण न हों।
  • हिमांशु मोहन राय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (वर्ष 2017): उच्चतम न्यायालय ने माना कि जहाँ चश्मदीद की गवाही यह बताती है कि आरोपी ने मृतक की गोली मारकर हत्या की, वह विश्वसनीय होगा, विशेषज्ञ की राय उसे बदनाम नहीं कर सकती।